July 7, 2024
XYZ 123, Noida Sector 63, UP-201301
Alert Current News Geopolitics Indian-Subcontinent

भारत-नेपाल सीमा संबंधी अहम बैठक, पीएम मोदी ने दिया है विवाद सुलझाने का वादा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बॉर्डर विवाद सुलझाने के वादे के बीच भारत और नेपाल के सीमा सुरक्षा बलों के प्रमुख राजधानी दिल्ली में सोमवार से तीन दिवसीय (6-8 नवम्बर) अहम मीटिंग करने जा रहे हैं . नेपाल के आर्म्ड पुलिस (एपीएफ) फोर्स के चीफ भारत के सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) की महानिदेशक के साथ वार्षिक समन्वय बैठक के लिए दिल्ली आए हैं. 

भारत और नेपाल के बीच सीमा संबंधी मामलों से जुड़ी बैठक से पहले एसएसबी ने बयान जारी कर बताया कि महानिदेशक रश्मि शुक्ला और नेपाल एपीएफ चीफ राजू आर्यल के बीच 7वीं वार्षिक समन्वय बैठक राजधानी दिल्ली में आयोजित हो रही है. एसएसबी के मुताबिक “ये समन्वय बैठक दोनों देशों की फोर्स के लिए सीमा-संबंधी मामलों पर चर्चा करने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच के रूप में कार्य करती है. एसएसबी और एपीएफ प्रतिनिधिमंडल का लक्ष्य भारत-नेपाल सीमा के प्रभावी प्रबंधन के लिए दोनों बलों (फोर्स) के बीच समन्वय को मजबूत करना है.” 

एसएसबी के अधिकारी ने बताया कि इस बैठक का “उद्देश्य सीमा-पार अपराधों से सहयोगात्मक रूप से निपटने और बलों के बीच महत्वपूर्ण सूचनाओं के त्वरित आदान-प्रदान के लिए प्रभावी तंत्र का विकास करना है.” दरअसल, भारत और नेपाल के बीच 1850 किलोमीटर लंबी सीमा पर किसी तरह की कोई तारबंदी नहीं है. ऐसे में दोनों देशों के सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों की आड़ में बॉर्डर क्राइम भी प्रचलित है. यही वजह है कि सालाना बैठक में ऐसे सीमावर्ती अपराधों पर लगाम लगाने पर खासा जोर दिया जाएगा. पिछले साल ये वार्षिक समन्वय बैठक नेपाल की राजधानी काठमांडू में हुई थी. 2012 से भारत और नेपाल के सीमा प्रहरी इस तरह की समन्वय बैठक करते आए हैं. बारी-बारी से भारत और नेपाल दोनों इसकी मेजबानी करते हैं. 

इसी साल मई-जून के महीने में जब नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ भारत के दौरे पर आए थे, उनकी मौजूदगी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दोनों देशों के बीच सीमा विवाद सुलझाने का सार्वजनिक तौर से ऐलान किया था. यही वजह है कि नेपाल एपीएफ चीफ का दौरा (6-8 नवम्बर) बेहद अहम माना जा रहा है. 

भारत और नेपाल के बीच एक लंबा ‘पोरस’ बॉर्डर है. नेपाल सीमा की रखवाली एपीएफ करती है जबकि भारत की तरफ से एसएसबी को ये जिम्मेदारी दी गई है. भारत ने साफ कर दिया है कि नेपाल बॉर्डर पर पाकिस्तान और बांग्लादेश की तरह बॉर्डर फैन्स यानि कटीली तारबंदी नहीं की जाएगी. लेकिन सीमा पर कुछ ऐसे फ्लैश पॉइंट है जिसको लेकर दोनों पड़ोसी देशों के बीच तनाव पैदा हो जाता है. वर्ष 2019 में जब भारत ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटाकर देश का नया मैप (नक्शा) जारी किया था तो उस वक्त नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार ने जबरदस्त बखेड़ा खड़ा किया था. घी में आगे डालने का काम दूसरे पड़ोसी (चीन, पाकिस्तान जैसे) देशों ने सोशल मीडिया पर ये प्रोपेगेंडा फैलाकर किया था कि भारत ने दोनों देशों के बीच विवादित कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को अपने नक्शे में दिखाया है. 

भारत के उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र के इन तीनों इलाकों पर भारत का अधिकार है. लेकिन 370 स्क्वायर किलोमीटर के इस इलाकों को नेपाल भी अपना मानता है. यही वजह नेपाल की तत्कालीन के पी शर्मा ओली सरकार ने इस इलाके के साथ अपना नया नक्शा जारी कर दिया था. ओली के चीन से बेहद करीबी संबंध माने जाते थे. काठमांडू से लेकर दिल्ली और बीजिंग तक ये चर्चा थी कि ओली चीन की महिला राजदूत के हाथ के ‘कठपुतली’ हैं और उसके इशारे पर ही भारत के खिलाफ आग उगलते हैं. 

नेपाल और चीन से सटे ‘ट्राई-जंक्शन’ के नाते भारत इस इलाके को बेहद संवेदनशील मानता है. क्योंकि इसी रास्ते लिपुलेख पास से भारत के सबसे पवित्र तीर्थ-स्थल कैलाश मानसरोवर का मार्ग जाता है. लेकिन पिछले कुछ सालों से चीन की निगाह भी इसी इलाके पर टिकी रहती है. गलवान घाटी (पूर्वी लद्दाख) की झड़प के बाद कुछ ऐसी रिपोर्ट सामने आई थी जिसमें चीन ने तीर्थ यात्रा के लिए जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए बनाए टिन-शेड को उखाड़ कर फेंकने की कोशिश की थी. 

पिछले साल दिसंबर में नेपाल में प्रचंड की सरकार बनने के बाद एक बार फिर भारत के संबंध नेपाल से पटरी पर आते दिखाई पड़ रहे हैं. क्योंकि प्रचंड ने पूर्व की ओली सरकार से संबंध-विच्छेद कर लिए हैं. प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रचंड ने पहली विदेश यात्रा भारत की थी. इसी दौरान उनकी मुलाकात पीएम मोदी से हुई थी. हालांकि, प्रचंड पहले भी भारत के दौरे पर आ चुके हैं लेकिन सीमा विवाद सुलझाने को लेकर पहली बार दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने खुलकर चर्चा की थी. प्रचंड ने बाद में इसी साल सितंबर के महीने में चीन का दौरा भी किया था लेकिन वे उससे पहले अमेरिका की यात्रा पर गए थे. अमेरिका से ही प्रचंड सीधे बीजिंग पहुचे थे. हालांकि, वहां दोनों ही देशों के बीच व्यापार और इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट को लेकर कई मुद्दों पर करार हुआ था. 

ऐसे में अगर भारत और नेपाल सीमा विवाद सुलझाने पर सहमत हो जाते हैं तो दोनों देशों के आदिकाल से जो ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, व्यापारिक और ‘रोटी-बेटी’ का जो संबंध रहा है वो एक बार फिर से मजबूत हो सकता है. यही वजह है कि इस हफ्ते होने वाली एसएसबी और एपीएफ की बैठक को बेहद अहम माना जा रहा है.

भारत और नेपाल के बॉर्डर गार्डिंग फोर्स के प्रमुखों की बैठक ऐसे समय में हो रही है जब नेपाल में एक बड़े भूकंप के कारण भारी त्रासदी आई है. ऐसे में भारत ने नेपाल के लिए दक्षिण एशिया के ‘फर्स्ट रेस्पोंडेर’ के तौर पर राहत सामाग्री भेजने का काम किया है. वर्ष 2015 में नेपाल में आए भूकंप के दौरान भी भारत मदद के लिए सबसे पहले आगे आया था.

editor
India's premier platform for defence, security, conflict, strategic affairs and geopolitics.

Leave feedback about this

  • Rating