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इजरायल को हथियार, भारत की कूटनीति का इम्तिहान

गाजा के खिलाफ इजरायल को हथियारों की सप्लाई भारत के लिए गले की हड्डी बन सकती है. भले ही भारत, ऐसा कर इजरायल का करगिल युद्ध में की गई मदद का आभार प्रकट करना चाहता है लेकिन मिडिल-ईस्ट डिप्लोमेसी में भारत के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है. क्योंकि इजरायल के कट्टर दुश्मन देश ईरान से हाल ही में भारत ने चाबहार बंदरगाह के लिए बड़ा समझौता किया है. 

हाल ही में इजरायल के सीनियर डिप्लोमेट डेनियल कैरमन ने ये कहकर सभी को हैरान कर दिया था कि भारत, करगिल युद्ध (1999) का एहसान उतारना चाहता है. डेनियल, वर्ष 2014-18 के बीच भारत में इजरायल के राजदूत के पद पर रह चुके हैं.  

पाकिस्तान के खिलाफ करगिल युद्ध के दौरान इजरायल उन चुनिंदा देशों में से था जिसने गोला-बारुद के जरिए भारत की मदद की थी. क्योंकि उस दौरान अमेरिका समेत अधिकतर पश्चिमी देशों ने परमाणु परीक्षण (1998) के चलते भारत के खिलाफ प्रतिबंध लगा रखे थे. 

मई के महीने में स्पेन ने गोला-बारूद से भरे डेनमार्क के एक जहाज को अपने बंदरगाह पर रुकने पर रोक लगा दी थी. ये जहाज चेन्नई से इजरायल के एक बंदरगाह जा रहा था और रिफ्यूलिंग इत्यादि के लिए स्पेन में हॉल्ट करना चाहता था. जहाज में करीब 27 टन एम्युनिशन था. 

माना ये भी जा रहा है कि भारत में ही निर्मित कम से कम 20 हर्मीस-900 (स्टारलाइनर) यूएवी की सप्लाई इजरायल को की गई है. इन यूएवी का उत्पादन हैदराबाद में अडानी कंपनी द्वारा इजरायल की एल्बिट सिस्टम के साथ मिलकर किया जाता है. हालांकि, अडानी कंपनी भारत की सेना के तीनों अंगों यानी थलसेना, वायुसेना और नौसेना के लिए ये ड्रोन (दृष्टि) निर्माण कर रही थी लेकिन इसी बीच इजरायल और हमास के बीच जंग छिड़ गई. हालांकि, अडानी कंपनी ने नौसेना और थलसेना के लिए भी सप्लाई शुरु कर दी है. 

खास बात ये है कि भारत ने इजरायल को हथियार मुहैया कराने को लेकर अभी तक आधिकारिक तौर से कोई जानकारी साझा नहीं की है. न ही इन खबरों का खंडन किया है.   

इजरायल-हमास युद्ध छिड़ने के बाद से ही भारत ने बेहद संतुलित रूख रखा है. भारत ने इजरायल पर हुए आतंकी हमले की कठोर भर्त्सना की तो फिलिस्तीन के लिए ‘टू-स्टेट’ थ्योरी का भी समर्थन किया है. भारत चाहता है कि इजरायल के सभी बंधकों को छोड़ दिया जाए और गाजा में मानवीय सहायता प्रदान की जाए. 

इजरायली डिप्लोमेट डेनियल के कथन को लेकर ईरान और अरब देशों की मीडिया ने भारत की आलोचना शुरु कर दी है. साफ है कि मिडिल-ईस्ट में भारतीय कूटनीति का बड़ा इम्तिहान होने जा रहा है. 

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