रूस-यूक्रेन और इजरायल-हमास युद्ध के चलते दुनियाभर में गोला-बारूद की कमी आ सकती है. इन दोनों युद्ध में दुनिया के दो सबसे बड़े हथियारों के निर्यातक देशों के उलझे होने से एम्युनिशन की सप्लाई लाइन पर भी असर पड़ सकता है. ऐसे में हथियारों के बाजार में तेजी से उभर रहे भारत जैसे देश एम्युनिशन की ग्लोबल डिमांड भी पूरा कर सकते हैं. भारत के सामने करीब 1.82 लाख करोड़ के एम्युनिशन की वैश्विक मांग है जिसे भारत की डिफेंस इंडस्ट्री पूरा कर सकती है.
हाल ही में फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) ने केपीएमजी ग्रुप के साथ मिलकर ‘एमो-इंडिया 2024’ नाम की रिपोर्ट प्रकाशित की. इस रिपोर्ट में मेक इन इंडिया के तहत मेक फॉर द वर्ल्ड पर कैसे काम किया जा सकता है, उसे उल्लेखित किया गया है.
‘एएमओओ (एमो) इंडिया’ के मुताबिक, वर्ष 2023 में एम्युनिशन की ग्लोबल डिमांड करीब 1.30 लाख करोड़ (लगभग 15.5 बिलियन डॉलर) थी. इसमें सबसे ज्यादा डिमांड (53.48 प्रतिशत) हैवी कैलिबर गोला-बारूद की थी. दूसरे नंबर में डिमांड थी ग्रेनेड, लैंड माइंस और मोर्टार की (23.27 प्रतिशत) और उसके बाद 12.84 प्रतिशत के साथ मांग थी मीडियम कैलिबर की.
टैंक और तोप के गोले, हैवी कैलिबर एम्युनिशन का हिस्सा होते हैं. हालिया, रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान, माना जा रहा है कि रोजाना 15-20 हजार टैंक और तोप के गोले फायर किए गए हैं. इजरायल और हमास युद्ध के दौरान भी इजरायली डिफेंस फोर्सेज ने गाजा में टैंक का इस्तेमाल किया है. इसके अलावा हवाई हमलों में भी भारी बमों का इस्तेमाल किया गया है.
हमास के आतंकियों के टनल में छुपे होने के चलते फाइटर जेट से एक हजार किलो तक के बंकर-बर्स्ट बमों का इस्तेमाल किया गया है. इसी तरह के स्पाइस-2000 बमों का इस्तेमाल भारतीय वायुसेना ने वर्ष 2019 में बालाकोट एयर स्ट्राइक में इस्तेमाल किए थे.
एमो-इंडिया 2024 मेक इन इंडिया—मेक फॉर द वर्ल्ड रिपोर्ट के मुताबिक, ये डिमांड अगले एक दशक में यानी 2032 तक 1.84 लाख करोड़ (22 बिलियन डॉलर) तक पहुंच जाएगी. ऐसे में रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की डिफेंस इंडस्ट्री के लिए गोला-बारूद निर्माण के क्षेत्र में एक ग्लोबल पावर हाउस बनने की पूरी संभावनाएं हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2023 में भारत का एम्युनिशन मार्केट 7.57 करोड़ (844 मिलियन डॉलर) था और 2023-32 तक 4.93 प्रतिशत ग्रोथ रेट के साथ 11,981 करोड़ (1.4 बिलियन डॉलर) तक पहुंच जाएगा.
एमो-इंडिया रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक लड़ाईयों और मिलिट्री खर्च बढ़ने के कारण एम्युनिशन इंडस्ट्री का जबरदस्त ग्रोथ हो सकता है. इसका नतीजा ये हो सकता है कि ग्लोबल मार्केट में भारतीय कंपनियों के लिए संभावनाएं बढ़ सकती है.
हाल के सालों तक भारत को अपने हथियारों और गोला-बारूद के लिए रूस और इजरायल जैसे मित्र-देशों पर निर्भर रहना पड़ता था. लेकिन आज स्थिति ये है कि रूस को गोला-बारूद के लिए भारत पर निर्भर होना पड़ रहा है. रूस को मैंगो-बम तक भारत में ही बनाने पड़ रहे हैं. इसके अलावा रूस के जहाज तक का निर्माण भारत के शिपयार्ड कर रहे हैं.
खबर तो यहां तक है कि भारत आज मेक इन इंडिया में बने यूएवी (ड्रोन) तक इजरायल को सप्लाई करने जा रहा है. जबकि भारत को पहला ड्रोन आज से दो दशक पहले इजरायल से ही हेरोन और सर्चर के तौर पर मिले थे.
एमो-इंडिया रिपोर्ट के मुताबिक, अभी तक भारत में गोला-बारूद और हथियार बनाने की जिम्मेदारी मुख्यत सरकारी कंपनियों के कंधों पर थी. लेकिन लीगेसी कारणों के साथ साथ पुरानी तकनीक और सप्लाई चेन में आई रूकावट के चलते ये सरकारी कंपनियां देश की जरूरतों को ही बा-मुश्किल कर पाती थी. लेकिन मेक इन इंडिया पहल के चलते आज प्राईवेट कंपनियां भी देश में ही गोला-बारूद बना रही हैं.
ReplyForwardAdd reaction |