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तिब्बत के धर्मगुरु की रहस्यमय मौत, चीन में भाषण देने के बाद से थे लापता

पिछले आठ (08) महीने से रहस्यमय परिस्थितियों में चीन से गायब हुए एक बड़े तिब्बती धर्मगुरू की मौत से तिब्बती समुदाय में रोष फैल गया है. 56 वर्ष के तुलकू हुंगकर दोरजे, चीन के चिंगहई प्रांत स्थित लुंगनेगोन मठ के प्रमुख थे. उनकी मृत्यु वियतनाम में हुई है. तुलकू का अर्थ अवतार होता है.

तिब्बती समाज हैरान है कि तुलकू की मौत वियतनाम में कैसे हुई है. भारत में बौद्ध धर्म की शिक्षा लेने वाले तुलकू के पिता भी बौद्ध धर्म के बड़े अनुयायी थे. तुलकू को चीन (तिब्बत) में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए जाना जाता था. उन्होंने वंचित बच्चों के लिए स्कूलों की स्थापना भी की थी.

पिछले साल यानी जुलाई 2024 में तिब्बत में एक भाषण देने के बाद तुलकू लापता हो गए थे. चीन की शी जिनपिंग सरकार पर तुलकू के गायब करने का आरोप लग रहा था.

लापता होने के बाद चीन ने लगा दिया भाषण सुनने तक पर बैन

गायब होने के बाद चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार (सीसीपी) ने तुलकू के भाषण तक सुनने पर रोक लगा दी थी. तुलकू, पहले तिब्बती धर्मगुरु नहीं है जिनके भाषण या फिर उनके बारे में सार्वजनिक तौर से चर्चा करने पर चीन में प्रतिबंध लगा था. तिब्बतियों के सबसे बड़े धर्मगुरु दलाई लामा को लेकर भी चीन में ऐसा ही बैन लगा है.

बौद्ध भिक्षुओं को तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा की ‘मौत’ पर किसी भी तरह के धार्मिक आयोजन पर रोक लगा रही है. चीन की शी जिनपिंग सरकार ने दलाई लामा की ‘मौत’ के बाद तिब्बती धर्मगुरु की तस्वीर को भी किसी धार्मिक आयोजन में प्रदर्शित करने पर रोक लगा दी है. इस बाबत पिछले साल, चीन ने तिब्बत के बौद्ध मठों को बाकायदा एक ‘फरमान’ जारी किया है.

वियतनाम पहुंचने पर भी सस्पेंस

पिछले हफ्ते चीन की सरकार ने तुलकू के मठ को वियतनाम में मृत्यु के बारे में जानकारी दी. चीन ने हालांकि, इस बात का खुलासा नहीं किया है कि तुलकू किस तरह वियतनाम पहुंच गए और वहां उनकी कैसे मौत हो गई.

तिब्बती बौद्ध संस्थान पर अचानक बढ़ाई थी निगरानी

पिछले साल दिसंबर में चीन ने दुनिया के सबसे बड़े तिब्बती बौद्ध संस्थान में अचानक निगरानी बढ़ा दी थी. तिब्बत के लांगुर गार बौद्ध अध्ययन केंद्र में अचानक चीनी सैनिकों की तैनाती बढ़ा दी गई थी और हेलीकॉप्टर से नजर रखी जा रही थी.  

तिब्बती खाम क्षेत्र में मौजूद करजे चीनी गंजी के सेरथर काउंटी में एकेडमी में लगभग 400 चीनी सैन्य कर्मियों को तैनात किया गया था, जो अब सिचुआन प्रांत का हिस्सा है. चीनी अधिकारियों ने चीन के छात्रों को लांगुर गार एकेडमी छोड़ने का आदेश दिया था. साथ ही संस्थान में रहने का अधिकतम समय 15 वर्ष तक सीमित करने की योजना थी. इसके अलावा चीन लांगुर गार रहने वाले सभी भिक्षु और भिक्षुणियों के लिए अनिवार्य रजिस्ट्रेशन लागू करवाना चाहता है चीन. इसके अलावा चीनी सरकार एकेडमी में रहने वाले धार्मिक चिकित्सकों की संख्या भी कम करने की फिराक में है.

हालिया दिनों में तिब्बत में आक्रामक है चीन

तिब्बत को लेकर लंबा विवाद है. साल 1959 में एक बड़े विद्रोह के बाद दलाई लामा भारत चले गए, जहां उन्होंने निर्वासित तिब्बत सरकार की स्थापना की. पर चीन, तिब्बत को अपना क्षेत्र मानता है. हाल के दिनों में तिब्बत में सैन्य तैनातियों के अलावा बड़े पैमाने पर सैन्य निर्माण भी देखा गया है. और अब तिब्बती  तिब्बती बौद्ध अध्ययन केन्द्र लांगुर गार बौद्ध एकेडमी में सैनिकों की बढ़ी तैनाती भी इसी आक्रामकता का हिस्सा है.

लांगुर गार को पहली बार चीन ने अपने निशाने पर नहीं लिया था. पहले भी कई बार ऐसी घटनाएं सामने आ चुकी हैं.

तिब्बत के गांव प्रमुख को चीन ने किया था टॉर्चर

हाल ही में तिब्बत के एक गांव प्रमुख गोंपो नामग्याल को चीनी अधिकारियों ने हिरासत में लेकर यातनाओं का शिकार बनाया था. गोंपो नामग्याल, जो पोन्कोर टाउनशिप, डारलाग काउंटी के प्रमुख थे. गोंपो नामग्याल ने “प्योर मदर टंग” अभियान में सक्रिय भूमिका निभाई थी. यह अभियान तिब्बती भाषा को संरक्षित करने के लिए आंदोलन किया था.

चीन ने इस आंदोलन को “राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा” बताकर खेन्पो धारग्ये, गोंपो नामग्याल और कई अन्य कार्यकर्ताओं को मई 2024 में गिरफ्तार कर लिया. 18 दिसंबर को चीन के टॉर्चर के बाद गोंपो नामग्याल की मौत हो गई थी.