पाकिस्तान के बलूचिस्तान में एक बड़ा अटैक हुआ है. बलूचिस्तान के मुसाखेल इलाके में बंदूकधारी हमलावरों ने 23 यात्रियों को बसों से उतारकर गोलियों से भून दिया और बसों को आग के हवाले कर दिया. बताया जा रहा है कि बलूच लिबरेशन आर्मी के आतंकवादियों ने कई बसों, ट्रकों और वैन को रोका, लोगों का आई-कार्ड चेक किया और फिर एक-एक को गाड़ियों से बाहर निकालकर मौत के घाट उतार दिया. आतंकियों ने वारदात से पहले नेशनल हाईवे ब्लॉक कर दिया था. बलूच लिबरेशन आर्मी के हथियारबंद सदस्यों ने इन गाड़ियों को रोका और उनके पहचान पत्र देखने के बाद पंजाबी मूल के लोगों को भून डाला. मारे गए सभी लोग पंजाब प्रांत के थे और पाकिस्तानी सेना के जवान थे जो सिविल ड्रेस में बस में यात्रा कर रहे थे.
‘ऑपरेशन हेरोफ’ से लिया बदला, 70 पाक सैनिक मारे: बीएलए
बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने दावा किया है कि उन्होंने तुरबत के बेला मिलिट्री कैंप में भी हमला किया. इस हमले में बीएलए ने 40 पाकिस्तानी सैनिकों को मारा है. बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने ‘ऑपरेशन हेरोफ’ बताते हुए आधिकारिक बयान जारी किया है. बीएलए के प्रवक्ता जायद बलूच ने कहा है कि “बीएलए की मजीद ब्रिगेड ने बेला मिलिट्री कैंप के एंट्री गेट और पास की सुरक्षा चौकियों पर विस्फोटकों से लदे दो वाहनों से बड़ा हमला कर दिया. रविवार शाम को शुरु हुए इस ‘ऑपरेशन हेरोफ’ में 62 पाकिस्तानी सेना के जवानों को मारा गया है.”
चीन का कट्टर दुश्मन है बीएलए
पाकिस्तान में इससे पहले अप्रैल में बलूचिस्तान के नोशकी शहर में एक हथियारबंद शख्स ने बस में सवार यात्रियों के आईडी कार्ड चेक किए और उनमें से 9 लोगों को गोलियों से भून डाला था. दरअसल बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए)पाकिस्तान और चीन की नजदीकियों का भी विरोधी है. बीएलए हमेशा से पाकिस्तान में चीन की परियोजना का विरोध करता रहा है. चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर का बड़ा हिस्सा बलूचिस्तान से होकर गुजरता है. बीएलए हमेशा से कॉरिडोर के विरोध में रहा है और इसी वजह से चीन के ठिकानों और श्रमिकों पर पहले भी कई बार बीएलए ने अटैक किया है.
30 अगस्त को बलूचिस्तान मनाएगा गायब हुए लोगों का दिन
फ्री बलूचिस्तान आंदोलन के तले 30 अगस्त को लंदन और एम्सटर्डम (नीदरलैंड) में बलूच नागरिक धरना-प्रदर्शन आयोजन करेंगे. ये विरोध प्रदर्शन पाकिस्तानी सुरक्षाबलों द्वारा बलूचिस्तान में अगवा किए गए लोगों की याद में किया जा रहा है. बलूचिस्तान आंदोलन से जुड़े नेताओं को पाकिस्तानी सेना अगवा कर ले जाती है और फिर उनका कुछ अता पता नहीं चलता है. माना जाता है कि इन नेताओं को मौत के घाट उतारकर गुपचुप तरीके से शवों को ठिकाने लगा दिया जाता है.