July 3, 2024
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चीन का कॉग्निटिव-युद्ध, भारत कैसे करेगा मुकाबला (TFA Investigation पार्ट-2)

हाल ही में जब दिल्ली पुलिस ने न्यूज़क्लिक मीडिया आउटलेट के संस्थापक और एडिटर इन चीफ प्रबीर पुरकायस्थ के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दायर करते हुए ‘तीसरे विश्व-युद्ध’ और ‘गोरिल्ला इनफार्मेशन वारफेयर’ का जिक्र किया तो हर कोई भौचक्का रह गया. क्या वाकई भारत के खिलाफ चीन ने ऐसी जंग छेड़ दी है जिसमें सीधे तौर से सेना का इस्तेमाल न कर ‘प्रॉक्सी-सोल्जर्स’ का इस्तेमाल किया गया है. क्या भारत अकेला ऐसा देश है जिसके खिलाफ चीन ने ‘कॉग्निटिव डोमेन ऑपरेशन’ छेड़ दिया है. 

ओपन सोर्स इंटेलिजेंस के आधार पर टीएफए  ने इन्वेस्टीगेशन की तो पाया कि जिन प्रमुख देशों के साथ चीन का सीमा विवाद है या फिर किन्हीं कारणों से तनातनी रहती है वहां ‘साइकोलॉजिकल वारफेयर’ की शुरुआत हो चुकी है. फिर वो चाहे भारत हो या अमेरिका या फिर फिलीपींस. इसके जरिए भोली-भाली जनता और मीडिया अपने ही देश की आर्मी और सिविलियन (राजनीतिक) लीडरशिप की अथोरिटी को ‘अंडरमाइन’ यानी कमजोर दिखाने की कोशिश करती है या उन्हें चुनौती देना शुरु कर देती है. इस वैश्विक साजिश को अंजाम दिया जा रहा है चीन के नए ‘पीपुल्स आर्म्ड फोर्सेज डिपार्टमेंट’ (पीएएफडी) द्वारा. कहने को तो पीएएफडी चीन की पीएलए सेना का हिस्सा हैं लेकिन ये दरअसल ‘कॉरपोरेट मिलिशिया’ हैं जिसके कारण सिविल-मिलिट्री हितों में कोई अंतर नहीं रह गया है. यही ‘कोग्निटिव वारफेयर’ है. यानी सेना के साथ-साथ इनफॉर्मेशन, साइबर, साइक्लोजिक और सोशल इंजीनियरिंग जैसे गैर-सैन्य तरीकों का इस्तेमाल कर ‘दुश्मन पर बढ़त बनाई जाए’.

60 और 70 के दशक में कनाडा के चर्चित दार्शनिक मार्शल मैक्लुहान ने ग्लोबल स्टेज यानी वैश्विक-पटल पर मीडिया के इस्तेमाल को लेकर कई पुस्तक और लेख लिखे थे. उसी दौरान मैक्लुहान ने लिखा था कि “तीसरा विश्वयुद्ध एक गोरिल्ला इंफॉर्मेशन युद्ध है जिसमें मिलिट्री और सिविल भागीदारी में कोई अंतर नहीं होता है.” उस वक्त मैक्लुहान की बातों को किसी नहीं संजीदगी से नहीं लिया था. 1980 में मैक्लुहान की मृत्यु हो गई थी. 

मैक्लुहान की मौत के समय ही दुनिया में इंटरनेट एंट्री ले रहा था. इंटरनेट के आने से ‘इनफार्मेशन वारफेयर’ की दुनिया में एक नई क्रांति सामने आई. तब जाकर दुनिया को मैक्लुहान की कही गई बातें याद आई और समझ भी आई. शायद यही वजह है कि दिल्ली पुलिस ने न्यूज़क्लिक  मामले की चार्जशीट में मैक्लुहान की कही गई बातों का खास जिक्र किया है. इसी महीने की 31 तारीख को दिल्ली की अदालत न्यूज़क्लिक  के संस्थापक पुरकायस्थ के खिलाफ चार्जशीट पर आरोप तय करेगी.   

दरअसल, पीएएफडी के बनने से चीन ने अपनी कॉरपोरेट कंपनियों को ‘प्राइवेट मिलिशिया’ खड़ा करने की इजाजत दे दी है. इन ‘कॉरपोरेट मिलिशिया’ में जरूरी नहीं है कि चीनी सैनिक या फिर पूर्व सैनिक ही काम कर सकते हैं. इनमें प्राईवेट चीनी नागरिकों को आने की इजाजत है जो अपना नौकरी-पेशा कर सकते हैं लेकिन वे मिलिट्री की ‘ऑक्जिलरी-फोर्स’ यानी सहायक बल की तरह काम करते हैं. रिपोर्ट्स की मानें तो पिछले एक साल में चीन में 16 ऐसी बड़ी कॉरपोरेट कंपनियां खड़ी की गई हैं जिनकी अपनी खुद की मिलिशिया यानी प्राईवेट सेना है. ये कंपनियां चीन के ओवरसीज ऑपरेशन्स में दुश्मन देशों में घुसपैठ कराने का काम आसान करती हैं. इन कंपनियों से दूसरे देशों की राष्ट्रीय सुरक्षा पर खासा असर पड़ता है. 

जानकारों की मानें तो माओ-काल (50-70 के दशक) में चीन में पीएएफडी बनाने का चलन शुरु हुआ था. लेकिन बाद में इसे खत्म कर दिया गया. शी जिनपिंग के तीसरी बारी चीन का राष्ट्रपति बनने के बाद एक बार फिर ये कवायद शुरु हुई है. इसका उद्देश्य ‘इनफार्मेशन वारफेयर’ और ‘साइकोलॉजिकल ऑपरेशन्स’ के जरिए “दुश्मन देशों की आत्मरक्षा करने की इच्छाशक्ति को खत्म करना है या बेहद कमजोर कर देना है.” 

चीन की हुवाई (हुआवेई) और अलीबाबा कंपनियों के बारे में जगजाहिर है कि ये दोनों परोक्ष या फिर अपरोक्ष रूप से चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी आनी पीएलए से जुड़ी हुई हैं. अलीबाबा का संस्थापक जैक मा तो चीन की सबसे बड़ी (एकमात्र) चायनीज कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) का सदस्य है. लेकिन हाल ही में अमेरिकी कांग्रेस (संसद) की एक खास कमेटी (‘द सेलेक्ट कमेटी ऑन सीसीपी’) ने पांच ऐसी चीनी कंपनियों को चिन्हित किया जिनमें यूएस का निवेश है लेकिन उनका संबंध पीएलए से था. 

यूएस कमेटी ने पाया कि “इन पांचों कंपनियों ने करीब 3 बिलियन डॉलर का निवेश ऐसी कंपनियों में किया जिसका पीएलए से नाता था.” ये कंपनियां अधिकतर एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) और क्रिटिकल टेक्नोलॉजी से जुड़ी हुई थीं जो पीएलए के आधुनिकीकरण में जुटी थीं. इनमें से कुछ कंपनियां तो ऐसी थी जिन्हें अमेरिका ने ‘ब्लैक-लिस्ट’ श्रेणी में डाला हुआ था क्योंकि ये चीनी सेना के उइगर समुदाय के खिलाफ मानवाधिकार उल्लंघन मामलों में साथ देती थीं. एक अनुमान के मुताबिक, अमेरिकी निवेश वाले 70 प्रतिशत चीनी वेंचर कैपिटल (वीसी) का संबंध पीएलए से है. चीन के बढ़ते प्रभाव से परेशान होकर ही अमेरिका ने चीनी सोशल मीडिया ‘टिकटॉक’ को दो टूक कह दिया है कि अगर यूएस में रहना है तो चीनी स्वामित्व को बदलना होगा. कंपनी में अमेरिका मूल के नागरिकों को हिस्सेदारी देनी होगी नहीं तो भारत की तरह कंपनी पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा.

दिल्ली पुलिस और एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट, दोनों का ही आरोप है कि न्यूज़क्लिक  की फंडिंग अमेरिका की ‘थॉटवर्क्स’ नाम की कंपनी से की जाती थी. इस कंपनी का मालिक श्रीलंकाई मूल का अमेरिकी नागरिक नेविल रॉय सिंघम है लेकिन उसे चीन के ‘डीप-स्टेट’ से फंडिंग होती है. भारतीय एजेंसियों का आरोप है कि नेविल रॉय के इशारे पर न्यूज़क्लिक में भारत विरोधी और चीन के समर्थन में लेख प्रकाशित किए जाते थे. यहां तक की 2020 के दिल्ली दंगों, कश्मीर और सीएए-एनआरसी जैसे गंभीर विषयों पर सोची समझी साजिश के तहत न्यूज़क्लिक  में ‘डिस-इनफार्मेशन’ को बढ़ावा दिया जाए.  

टीएफए की इंवेस्टीगेशन में ये भी सामने आया कि चीन की प्राईवेट सिक्योरिटी कंपनियां (पीएससी) भी सीसीपी की ‘ग्लोबल पावर’ को प्रदर्शित करने और प्रभाव को बढ़ाने में खासी मदद कर रही हैं. इस वक्त चीन में 20-40 बड़ी पीएससी हैं जो करीब 40 देशों में ओपरेट कर रही हैं. ये प्राईवेट कंपनियां ‘सीसीपी के हथियार’ की तरह काम करती हैं. क्योंकि वर्ष 2009 में चीन में लाए गए कानून के तहत ये प्राईवेट कंपनियां सीधे चीन की सरकार के अंतर्गत आती हैं. इन प्राईवेट सिक्योरिटी कंपनियों को विदेश में चल रहीं चीनी कंपनियां को अपनी सुरक्षा के लिए इस्तेमाल करती ही हैं, साथ ही उन देशों में भी तैनात हैं जहां शी जिनपिंग का ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (बीआरआई) फ्लैगशिप प्रोजेक्ट फैला हुआ है. 

इन प्राईवेट सिक्योरिटी कंपनियों में पीएलए के पूर्व सैनिकों को ही रिक्रूट किया जाता है. ऐसे में ये कंपनियां भी पीएलए का ही ‘एक्सटेंशन’ मानी जाती हैं. ये प्राईवेट सिक्योरिटी कंपनियां दूसरे देशों में पीएलए की सर्विलांस क्षमताओं के साथ ही दूसरे देशों की सेनाओं और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर पैनी नजर रखती हैं. माना जाता है कि जिन देशों में ये कंपनियां कार्यरत हैं वहां ‘सुरक्षा में सेंध की खबरें’ भी सामने आती हैं. 

टीएफए ने अपनी इंवेस्टीगेशन के पहले पार्ट में बताया था कि किस तरह चीन ‘ग्लोबल नैरेटिव’ बनाने की साजिश रच रहा है. इसके लिए पैसे, रिश्वत और धोखाधड़ी के जरिए दुश्मन देशों की सेनाओं के अधिकारियों और सामरिक जानकारों को जासूसी के लिए खरीदा जा रहा है. ऐसा कर चीन ना केवल दुश्मन देशों की सैन्य क्षमताओं की जानकारी इकठ्ठा करना चाहता है बल्कि अपने ‘साइक्लोजिक वारफेयर’ को धार देने की फिराक में है. लेकिन भारत से लेकर फिलीपींस और अमेरिका तक शी जिनपिंग के ‘अनरिस्ट्रिक्टेड वारफेयर’ के बारे में भली भांति जान गए हैं और ड्रैगन से दो-दो हाथ करने के लिए तैयार हैं [चीन के ग्लोबल नैरेटिव का भंडाफोड़ (TFA Investigation पार्ट-1]

[टीएफए का ये लेख OSINT पर आधारित है.]

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