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पीक-हॉक सहित वायुसेना की चार यूनिट को सम्मान

उत्तर-पूर्व के राज्यों में चीन से सटी एयर-स्पेस की निगहबानी करने वाली वायुसेना की सिग्नल यूनिट को ‘प्रेसिडेंट्स कलर्स’ से सम्मानित किया जा रहा है. 8 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू राजधानी दिल्ली से सटे हिंडन एयरबेस पर वायुसेना की 509 सिग्नल यूनिट को खुद ये सम्मान देंगी. 1971 के युद्ध में ढाका के गवर्नर-हाउस पर हवाई हमले के दौरान मेघालय की राजधानी शिलांग में इसी यूनिट के हेडक्वार्टर को कमांड एंड कंट्रोल सेंटर बनाया गया था. 

8 मार्च के सम्मान समारोह से पहले ‘509 सिग्नल यूनिट’ के स्टेशन कमांडर, ग्रुप कैप्टन विवेक शर्मा ने राजधानी दिल्ली में टीएफए से बातचीत में बताया कि पूरे उत्तर-पूर्व के लिए उनकी यूनिट एयर डिफेंस डायरेक्शन सेंटर के तौर पर कार्यरत है. शिलांग में जहां उनकी यूनिट की लोकेशन है वो मेघालय की सबसे ऊंची चोटी पर है जहां खास टीएचडी 555 रडार लगी है. यही वजह है कि इस यूनिट को ‘पीक-हॉक’ के नाम से भी जाना जाता है और इसका आदर्श-वाक्य है ‘सततं तत्पर’. 

ग्रुप कैप्टन विवेक शर्मा ने बताया कि वर्ष 2019 में वायुसेना की इस सिग्नल यूनिट को इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम (आईएसीसीएस) के तौर पर अपग्रेड किया गया था. तभी से ये यूनिट वायुसेना के ईस्टर्न एयर कमांड (ईएसी) के नोड की तरह ऑपरेट कर रही है. भारतीय वायुसेना की ईएसी का मुख्यालय शिलांग में ही है और सिक्किम से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक चीन से सटी लाइन ऑफ एक्युअल कंट्रोल (एलएसी) के एयर-स्पेस की सुरक्षा संभालती है. 

वायुसेना के मुताबिक, 509 यूनिट सभी नेटवर्क सेंटरिक ऑपरेशन्स का ‘फोकल पॉइंट’ है क्योंकि इससे ईस्टर्न कमांड के सभी फाइटर जेट, ग्राउंड और एयर रडार सहित जमीन से आसमान में मार करने वाली मिसाइल यूनिट जुड़े हैं.

सशस्त्र सेनाओं की उन यूनिट्स को ‘प्रेसिडेंट स्टैंडर्ड’ और ‘प्रेसिडेंट कलर्स’ (राष्ट्रपति के प्रतीक और निशान) से सम्मानित किया जाता है जो 25 वर्षों से देश की सेवा और सुरक्षा में उत्कृष्ट कार्यों में जुटी हों. 509 सिग्नल यूनिट का गठन 1965 में किया गया था. सेनाओं की कॉम्बैट यूनिट्स को ‘प्रेसिडेंट स्टैंडर्ड’ से नवाजा जाता है और नॉन-काम्बैट को ‘कलर्स’ से. देश की राष्ट्रपति सशस्त्र सेनाओं की सुप्रीम कमांडर भी हैं. 

8 मार्च को हिंडन एयरबेस पर वायुसेना की जिन तीन अन्य यूनिट को प्रेसिडेंट स्टैंडर्ड और प्रेसिडेंट कलर्स से नवाजा जाएगा उनमें नासिक स्थित बेस रिपेयर डिपो (11 बीआरडी), हलवारा (पंजाब) स्थित 221 स्क्वाड्रन और सुलूर (तमिलनाडु) स्थित 45 स्क्वाड्रन ( फ्लाइंग डैगर्स) शामिल हैं. 

11 बीआरडी, भारतीय वायुसेना की एकमात्र फाइटर एयरक्राफ्ट बेस रिपेयर डिपो है जिसका गठन 1974 में किया गया था. सुखोई-7 की ओवरहालिंग से शुरुआत करने वाले इस बेस डिपो का आदर्श-वाक्य है ‘कायाकल्प’. मिग-21, मिग-23 और मिग-27 के बाद इन दिनों ये डिपो सुखोई (सु-30 एमकेआई) और मिग-29 की ओवरहालिंग में जुटा है. बीआरडी के एयर ऑफिसर कमांडिंग (एओसी), कमाडोर आशुतोष वैद्य ने टीएफए से बातचीत में बताया कि “जिस तरह एक कार की समय-समय पर सर्विस की जरूरत पड़ती है ठीक उसी तरह से लडा़कू विमानों की ओवरहालिंग जरुरी होती है.” इसीलिए बीआरडी बेहद अहम इकाई है. पिछले 50 सालों में 11 बीआरडी ने करीब 600 एयरक्राफ्ट की ओवरहालिंग की है. 

कमाडोर वैद्य के मुताबिक, स्वदेशी रिपेयर डिपो के चलते पहले सोवियत संघ के टूटने और हालिया कोविड-19 पाबंदियों और रुस-यूक्रेन युद्ध का कोई खास असर वायुसेना की ऑपरेशन्स में देखने को नहीं मिला है. 

हलवारा स्थित 221 स्क्वाड्रन में वर्ष 2017 से सुखोई (सु 30 एमकेआई) फाइटर जेट तैनात हैं. लेकिन ‘वेलियंट’ के नाम से विख्यात इस स्क्वाड्रन का गठन 1963 में किया गया था. उस दौरान ये स्क्वाड्रन पश्चिम बंगाल के बैरकपुर में तैनात थी और इसमें वैमपायर एयरक्राफ्ट थे. स्क्वाड्रन ने 1965, 1971 और कारगिल युद्ध के अलावा सियाचिन में ‘ऑपरेशन मेघदूत’ के दौरान अहम भूमिका निभाई थी. ऑपरेशन मेघदूत के दौरान इसी स्क्वाड्रन के मिग-23 ने पहली बार लेह एयर फील्ड पर लैंडिंग की थी. 

सुलूर स्थित 45 स्क्वाड्रन में वर्ष 2016-17 से स्वदेशी लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) तेजस तैनात हैं. ‘फ्लाइंग-डैगर्स’ के नाम से प्रख्यात इस स्क्वाड्रन का गठन 1959 में हुआ था और इसका आदर्श वाक्य है ‘अजिताक्षय’. इसी स्क्वाड्रन के मिग-21 बाइसन फाइटर जेट ने वर्ष 1999 में कच्छ में पाकिस्तानी नौसेना के एक टोही विमान ‘अटलांटिक’ को आर-60 इंफ्रारेड मिसाइल से भारतीय एयरस्पेस में घुसपैठ के चलते मार गिराया था. ये भारतीय वायुसेना का 20वीं सदी का आखिरी ‘किल’ था. उन दिनों ये स्क्वाड्रन कच्छ के नलिया एयरबेस पर तैनात थी (https://youtu.be/wIUFnOmyA74?si=QXfH2pMgUDKHaKrI)

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