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उपदेशकों की जरूरत नहीं, यूरोप पर भड़के जयशंकर

सैन्य एक्शन से पहले पाकिस्तान के खिलाफ विदेश मंत्री एस.जयशंकर की चाणक्य नीति ने असर दिखाना शुरु कर दिया है. बड़े और शक्तिशाली देश भारत के पक्ष में खड़े नजर आ रहे हैं. लेकिन कुछ यूरोपीय देशों को एस जयशंकर ने बेबाकी से उनके रुख के कारण सुना दिया है. एस जयशंकर ने भारत के साथ गहरे संबंध विकसित करने को लेकर यूरोप के देशों से कहा है कि “भारत भागीदारों की तलाश कर रहा है, न कि उपदेशकों की.”

कुछ उपदेशक, घर पर कुछ और बाहर कुछ और करते हैं: एस जयशंकर

जयशंकर ने 2025 में आर्कटिक सर्कल इंडिया फोरम में कहा, “भारत दुनिया में उपदेश देने वालों की बजाय सहयोगियों की तलाश में है, खासकर उन उपदेशकों की जो घर पर कुछ और बाहर कुछ और करते हैं.भारत ऐसे देशों के साथ काम करना चाहता है जो आपसी सम्मान और समझ दिखाएं.”

यूरोप पर तंज कसते हुए एस जयशंकर ने कहा, “कुछ यूरोपीय देश अभी भी अपने मूल्यों और कार्यों के बीच अंतर से जूझ रहे हैं. जब हम दुनिया को देखते हैं, तो हम भागीदारों की तलाश करते हैं, उपदेशकों की नहीं, खासकर ऐसे उपदेशक जो घर पर वह नहीं करते जो वे विदेश में उपदेश देते हैं. यूरोप अभी भी इस समस्या से जूझ रहा है. अगर हमें एक साझेदारी विकसित करनी है, तो कुछ समझ, संवेदनशीलता, आपसी हित और इस बात का एहसास होना चाहिए कि दुनिया कैसे काम करती है.” 

भारत और रूस, भारत और अमेरिका के रिश्ते पर बेबाकी से रखी राय

विदेश मंत्री ने रूस-यूक्रेन संघर्ष का समाधान रूस को शामिल किए बिना खोजने के पश्चिम के पहले के प्रयासों की भी आलोचना करते हुए कहा कि इसने ‘‘यथार्थवाद की बुनियादी बातों को चुनौती दी है.’’ जयशंकर ने ‘आर्कटिक सर्किल इंडिया फोरम’ में कहा, ‘‘मैं जैसे रूस के यथार्थवाद का समर्थक हूं, वैसे ही मैं अमेरिका के यथार्थवाद का भी समर्थक हूं.”

विदेश मंत्री ने कहा, “मुझे लगता है कि आज के अमेरिका के साथ जुड़ने का सबसे अच्छा तरीका हितों की पारस्परिकता को खोजना है, न कि वैचारिक मतभेदों को आगे रखकर मिलकर काम करने की संभावनाओं को कमजोर होने देना.”

जयशंकर ने कहा कि भारत अब एक महत्वपूर्ण देश बन गया है. दुनिया में कहीं भी कुछ होता है, तो उसका असर भारत पर पड़ता है. दुनिया में प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है और यह आसान नहीं होने वाला है. अलग-अलग मोर्चों पर अशांति है.अमेरिका के रुख में काफी बदलाव है. 

ईयू का संदेहास्पद रुख, भारत को दी थी नसीहत

एस जयशंकर ने टिप्पणी को ईयू (यूरोपीय संघ) के संदर्भ में माना जा रहा है. दरअसल पहलगाम नरसंहार को लेकर एस जयशंकर ने यूरोपीय यूनियन की राजनयिक काजा कलास से बात की थी. लेकिन काजा कलास की एक टिप्पणी से ईयू का दोहरा चरित्र उजागर हो गया है.

काजा कलास ने कहा है कि “तनाव बढ़ाने से किसी का भला नहीं होगा.” जबकि उन्होंने सीमा पार पाकिस्तान की ओर से भारत के खिलाफ आतंकवाद का समर्थन करने की भूमिका को लेकर एक बार कुछ नहीं कहा, जिससे भारत दशकों से पीड़ित रहा है. इससे पहले भी एस जयशंकर ईयू को घेर चुके हैं. एस जयशंकर ने कहा था, “यूरोप को अपनी उस मानसिकता से बाहर निकलना होगा, जिसमें उसे लगता है कि यूरोप की समस्या पूरी दुनिया की समस्या है, लेकिन पूरी दुनिया की समस्याएं यूरोप की समस्या नहीं है.”

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