रुस की सफल यात्रा के बाद अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूक्रेन जाने की तैयारी कर रहे हैं. अगले महीने यानी अगस्त में पीएम मोदी यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की से मिलने कीव जा सकते हैं. रुस-यूक्रेन युद्ध शुरु होने के बाद पहली बार पीएम मोदी कीव जाएंगे.
माना जा रहा है कि पीएम मोदी की कीव यात्रा का मकसद यूक्रेन को रुस के साथ शांति वार्ता शुरु करना हो सकता है. क्योंकि मॉस्को के दौरे के दौरान (8-9 जुलाई) पीएम मोदी ने रुस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के सम्मुख यूक्रेन में शांति लाने के लिए हर संभव प्रयास की बात कही थी. खुद पुतिन ने भी भारत के इन प्रयासों की सराहना की थी.
यहां तक की अमेरिका भी भारत की रुस से करीब संबंधों का हवाला देकर यूक्रेन से जंग समाप्त करने में मदद करने का आग्रह कर चुका है. यही वजह है कि पीएम मोदी की कीव यात्रा पर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी होंगी.
हालांकि, भारत और यूक्रेन ने आधिकारिक तौर पर पीएम मोदी की कीव यात्रा को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की है. लेकिन यूक्रेन की एक मंत्री इनदिनों राजधानी दिल्ली की यात्रा पर हैं. इससे पहले यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा भी भारत के दौरे पर आए थे. इसी हफ्ते कुलेबा ने बीजिंग का दौरा भी किया था. चीन भी भारत की तरह ही रूस का करीबी देश है.
पिछले महीने (13-14 जून) ही पीएम मोदी ने इटली में जेलेंस्की से भी मुलाकात की थी. जेलेंस्की से वार्ता के बाद मोदी ने कहा था कि “भारत, यूक्रेन के साथ द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करने के लिए उत्सुक है. (रुस से) जारी शत्रुता के संबंध में दोहराया कि भारत मानव-केंद्रित दृष्टिकोण में विश्वास करता है और मानता है कि शांति का रास्ता बातचीत और कूटनीति के माध्यम से है.” (युद्धविराम की शर्त के बीच मिले मोदी-जेलेंस्की)
भारत लगातार मानता आया है कि रुस-यूक्रेन के बीच विवाद को ‘बातचीत और डिप्लोमेसी’ के जरिए ही सुलझाया जा सकता है. मॉस्को में पुतिन से मुलाकात के दौरान मोदी ने यूक्रेन में युद्ध के दौरान मासूम बच्चों की मौत पर दुख जताया था. मोदी के इस बयान की पूरी दुनिया में चर्चा हुई थी. क्योंकि जिस दिन मोदी मॉस्को में मौजूद थे, उसी दिन कीव के एक बच्चों के अस्पताल पर मिसाइल से हमला हुआ था. (मोदी-पुतिन के गले मिलने से तिलमिलाया यूक्रेन)
फरवरी 2022 में शुरु हुई रुस-यूक्रेन जंग के बाद से ही अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन सहित पश्चिमी देशों (यूरोपीय और नाटो देशों) के लगभग सभी राष्ट्राध्यक्ष कीव के दौरे पर जा चुके हैं. साथ ही जापान, इंडोनेशिया और दक्षिण कोरिया जैसे एशियाई देशों के राष्ट्राध्यक्ष भी जेलेंस्की से मिलने कीव जा चुके हैं. हालांकि, ये अधिकतर वे देश हैं जो युद्ध में कीव की मदद कर रहे हैं या समर्थन कर रहे हैं.
भारत, भले ही यूक्रेन युद्ध के खिलाफ है लेकिन रुस का खुलकर विरोध नहीं किया है. यहां तक की इस दौरान रुस के साथ संबंधों को मजबूत किया है और हथियारों से लेकर तेल और फ्रटिलाइजर सहित व्यापारिक संबंध जारी रखे हैं. वहीं पश्चिमी देशों ने रुस का बहिष्कार कर हजारों प्रतिबंध लगा रखे हैं.
युद्ध के शुरुआती महीनों में भारत को रुस का विरोध न करने को लेकर आलोचना का शिकार भी होना पड़ा था. यूक्रेन ने रुस से आयात तेल पर खून लगे होने जैसी टिप्पणी तक की थी. लेकिन रुस के हाथों एक चौथाई देश खोने के बाद और लगातार मिल रही हार के बाद यूक्रेन और पश्चिमी देश भी अब युद्ध समाप्त करने के पक्षधर हैं.
पुतिन भी यूक्रेन से जंग खत्म कराने चाहते हैं लेकिन दो बड़ी शर्ते सामने रख दी हैं. पहली ये कि डोनबास से सटी सीमा से यूक्रेन अपनी सेना हटा लेगा और दूसरा ये कि यूक्रेन, नाटो की सदस्यता नहीं लेगा. वहीं, जेलेंस्की की जिद है कि रुस जब तक डोनबास और क्रीमिया से अपने सैनिक वापस नहीं करेगा तब तक बातचीत संभव नहीं है.
अमेरिका में हालांकि राष्ट्रपति के चुनाव को देखते हुए यूक्रेन के तेवर थोड़े ढीले पड़े हें. क्योंकि मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडेन ने चुनाव लड़ने से साफ इंकार कर दिया है. बाइडेन ने जेलेंस्की को रुस के खिलाफ लड़ने में हथियारों और वित्तीय तौर पर बड़ी मदद की है.
हाल ही में अमेरिका ने यूक्रेन के लिए 68 बिलियन डॉलर की मदद दी थी. लेकिन अमेरिका राष्ट्रपति पद के मजबूत दावेदार, पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप साफ कह चुके हैं कि अगर वे जीतते हैं तो यूक्रेन को दी जाने वाली सारी मदद बंद कर देंगे. ऐसे में अगर ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बनते हैं तो यूक्रेन के लिए मुश्किल हालात पैदा हो सकते हैं. (दुनिया के सबसे बड़े ‘सेल्समैन’ हैं जेलेंस्की: ट्रंप)
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