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MQ-9 ड्रोन को गिराना पड़ा समंदर में, सौदे पर सवालिया निशान

हिंद महासागर की निगहबानी के लिए अमेरिका से लिया एक एमक्यू-9 रीपर ड्रोन बुधवार दोपहर चेन्नई के करीब समंदर में गिर गया. भारतीय नौसेना के मुताबिक, एक तकनीकी खराबी के कारण रिमोटली पायलट एयरक्राफ्ट (आरपीए) को ‘कंट्रोल’ में लेकर समंदर में गिराया गया. क्रैश के वक्त, एमक्यू-9 आरपीए एक रूटीन सर्विलांस मिशन पर था. ये दुर्घटना ऐसे समय में सामने आई है जब प्रधानमंत्री के इसी हफ्ते अमेरिका दौरे के दौरान 31 एमक्यू-9 ड्रोन के सौदे पर बातचीत होने की उम्मीद थी.

भारतीय नौसेना ने वर्ष 2020 में अमेरिका की जनरल अटॉमिक्स से दो हाई ऑल्टिट्यूड लॉन्ग एंड्यूरेंस (एचएएलई यानी हेल) आरपीए (एमक्यू-9 रीपर ड्रोन) लीज पर लिए थे. इन दोनों आरपीए को नौसेना के अराकोनम (चेन्नई के करीब) स्थित आईएनए राजाली नेवल बेस पर तैनात किया गया है.

एक संक्षिप्त बयान में नौसेना ने बताया कि बुधवार दोपहर “करीब 2 बजे चेन्नई के करीब समंदर की निगरानी के दौरान आरपीए (एमक्यू-9) में एक तकनीकी खराबी आई जिसे फ्लाइट के दौरान रिसेट नहीं कर पाए. ऐसे में एयरक्राफ्ट को समंदर के ऊपर ही एक सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया और चेन्नई के करीब समंदर में गिरा दिया गया.”

नौसेना के मुताबिक, आईईएम यानी एयरक्राफ्ट को बनाने वाली कंपनी (जनरल अटॉमिक्स) से एक डिटेल रिपोर्ट तलब की गई है.

पिछले कुछ समय से भारत, अमेरिका से 31 एमक्यू-9 ड्रोन खरीदने की तैयारी कर रहा है. लेकिन खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश के मामले से दोनों देशों के बीच आई खटास के चलते सौदा नहीं हो पा रहा था. अब जब इसी हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका के आधिकारिक दौर पर जा रहे हैं तो माना जा रहा है कि सौदा में तेजी आ सकती है.

एमक्यू-9 रीपर ड्रोन दुनिया के बेहतरीन रिमोटली पायलेटेड एयरक्राफ्ट सिस्टम में से एक है जिसका इस्तेमाल अमेरिकी सेना सहित कई नाटो देश करते हैं. एमक्यू-9 रीपर ड्रोन के आर्म्ड वर्जन यानि कॉम्बैट वर्जन को प्रीडेटर के नाम से जाना जाता है. लेकिन भारत को जो एमक्यू-9 मिलने जा रहे हैं वो अलग तरह के हैं. भारत को एमक्यू-9 के दो वेरिएंट मिलने जा रहे हैं. ये दो वेरिएंट हैं–स्काई-गार्डियन और सी-गार्डियन. थलसेना यानि भारतीय सेना और वायुसेना को मिलेंगे स्काई-गार्डियन. भारतीय नौसेना को मिलेंगे सी-गार्डियन. इसके मायने ये हुए कि जमीन और आसमान की निगहबानी के लिए स्काई-गार्डियन और समंदर में नजर रखने के लिए सी-गार्डियन.

जानकारी के मुताबिक, अमेरिका से भारत कुल 31 एमक्यू-9 ड्रोन लेने जा रहा है. लेकिन ये डील किस्तों में होगी. यानि पहली खेप में 10 ड्रोन लिए जाएंगे, बाकी उसके बाद. कुल 31 ड्रोन में से 15 ड्रोन जो होंगे नौसेना को मिलेंगे यानि 15 सी-गार्डियन इंडियन नेवी को मिलेंगे. इसी तरह से 16 स्काई गार्डियन जो भारत अमेरिका से लेने जा रहा है उसमें से 8-8 थलसेना और वायुसेना को मिलेंगे. यानि एलएसी से लेकर हिंद महासागर में चीन की हर हरकत पर ये एमक्यू-9 रखेंगे पैनी नजर.

ये एमक्यू-9 कोई साधारण क्वॉडकॉप्टर  नहीं हैं बल्कि किसी फाइटर जेट की ही तरह बड़े ड्रोन होते हैं. इसीलिए इन्हें रिमोटली पायलेटेड एयरक्राफ्ट सिस्टम का नाम भी दिया जाता है. इन एयरक्राफ्ट में पायलट, कॉकपिट में बैठकर आसमान में उड़ान नहीं भरता है बल्कि जमीन पर रहकर इन्हें रिमोट से फ्लाई करता है या ऑपरेट करता है. इन एमक्यू-9 ड्रोन की लंबाई 36 फीट होती है और इनका विंगस्पैन यानि चौड़ाई करीब-करीब 80 फीट की होती है.

ये एमक्यू-9 ड्रोन मल्टी रोल-मल्टी मिशन आरपीएएस सिस्टम होते हैं. यानि एक एयरक्राफ्ट कई तरह के रोल अपना सकता है और अलग-अलग तरह के ऑपरेशन भी कर सकते हैं. जैसाकि सी-गार्डियन ड्रोन है जो एंटी-सरफेस यानि दुश्मन के युद्धपोत को भी मिसाइल से मार गिराने में सक्षम है तो समंदर के कई सौ फीट नीचे ओपरेट कर रही पनडुब्बी को भी तबाह कर सकता है यानि एंटी-सबमरीन ऑपरेशन भी कर सकता है. ये हेल तकनीक यानि हाई ऑल्टिट्यूड लॉन्ग एंड्यूरेंस ड्रोन होते हैं. ये 40-50 हजार फीट की ऊंचाई पर 30-30 घंटे तक उड़ान भर सकते हैं.

एमक्यू-9 का मुख्य चार्टर आईएसआर है यानि इंटेलिजेंस, सर्विलांस और रिकोनिसेंस. वर्ष 2020-22 यानी दो सालों में भारतीय सेना के लीज लिए हुए दोनों सी-गार्डियन ड्रोन्स ने हिंद महासागर में 14 मिलियन स्क्वायर किलोमीटर के एरिया पर करीब 10 हजार घंटों की उड़ान भरी यानि 10 हजार घंटे तक नजर रखी.

अमेरिका के मुताबिक, भारत को जो एमक्यू-9 ड्रोन दिए जा रहे हैं, वे आर्म्ड वर्जन हैं (प्रीडेटर) यानी उनमें मिसाइल और दूसरे हथियार लगाए जा सकते हैं. 

अप्रैल 2023 में जब बंगाल की खाड़ी में म्यांमार के कोको आईलैंड में जब भारत को कुछ संदिग्ध गतिविधि की जानकारी मिली तो इसी भारतीय नौसेना ने लीज पर लिए सी-गार्डियन को इंटेलिजेंस-गैदरिंग के लिए भेजा था. जैसा कि माना जाता है कि म्यांमार ने गुपचुप तरीके से कोको आईलैंड चीन को दे दिया है और चीन यहां हवाई पट्टी और दूसरा इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने की फिराक में है. इस तरह की परिस्थितियों के लिए सी-गार्डियन ड्रोन बेहद कारगर साबित होते हैं.

अब आप ये सोच रहे होंगे कि जब भारत के पास अभी तक इस तरह के ड्रोन थे ही नहीं तो हिंद महासागर की निगहबानी कैसे करते थे. तो इसका जवाब ये है कि भारत ने वर्ष 2013 में अमेरिका से ही 13 पी8आई टोही विमान लिए थे. इन पी8आई विमानों को अमेरिका की ग्लोबल एविएशन कंपनी, बोइंग बनाती है. ये पी8आई टोही विमान एंटी सबमरीन वारफेयर में भी महारत हासिल रखते हैं. लेकिन इस तरह के लॉन्ग रेंज मेरीटाइम पैट्रोलिंग एंड रिकोनिसेंस विमानों को उड़ाने का बहुत ज्यादा खर्चा आता है. जबकि ड्रोन की फ्लाइट बेहद किफायती होती है. एक टोही विमान के एक घंटे उड़ने का मतलब है करीब 35 हजार डॉलर का खर्चा. जबकि सी-गार्डियन की फ्लाइट का खर्चा आएगा मात्र 5 हजार डॉलर.

मेरीटाइम एयरक्राफ्ट के मुकाबले ड्रोन के उड़ान में 90 प्रतिशत तक कम फ्यूल की खपत होती है. टोही विमान ज्यादा से ज्यादा 10 घंटे तक एक बार में उड़ान भर सकता है जबकि सी-गार्डियन जैसा ड्रोन 27-30 घंटे तक नॉन-स्टॉप फ्लाइ कर सकता है. ड्रोन को ओपरेट करने के लिए 50 प्रतिशत कम स्टाफ की जरूरत होती है. इसके अलावा पैट्रोलिंग एयरक्राफ्ट की 10 घंटे की उड़ान के बाद पायलट, को-पायलट और बाकी क्रू-मेम्बर्स को काफी ज्यादा थकान हो जाती है जबकि सी-गार्डियन ड्रोन में ऐसा दिक्कतों का सामना नहीं करना होता.

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