वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भले ही भारत के चीन के साथ संबंध सुधर रहे हैं लेकिन भारतीय सेना अपनी क्षमताओं को लगातार बढ़ाने में जुटी है. इसी कड़ी में भारतीय सेना के तोपखाने ने अरुणाचल प्रदेश में दो फायरिंग रेंज स्थापित की हैं. बोफोर्स तोप से लेकर भारतीय सेना की सभी तरह की आर्टिलरी गन की फायरिंग के लिए एक रेंज तो एलएसी के बेहद करीब तवांग सेक्टर के हाई ऑल्टिट्यूड क्षेत्र में तैयार की गई है.
भारतीय सेना की रेजिमेंट ऑफ आर्टिलरी के महानिदेशक (डीजी) लेफ्टिनेंट जनरल अदोष कुमार के मुताबिक, आधुनिक युद्ध में तोपखाने का महत्व काफी बढ़ गया है. अब तोपखाने में होवित्जर, आर्टिलरी गन और रॉकेट के साथ-साथ ड्रोन भी शामिल हो गए हैं.
शनिवार (28 सितंबर) को भारतीय सेना की रेजिमेंट ऑफ आर्टिलरी के 198 वें स्थापना दिवस के मौके पर मीडिया से बात करते हुए ले. जनरल अदोष कुमार ने बताया कि स्वदेशी तोपखाने में अब 155 एमएम गन को ही ज्यादा से ज्यादा शामिल किया जा रहा है. इसमें 300 स्वदेशी धनुष और एटीएजीएस (अटैग्स) तोप शामिल हैं. धनुष तोपों को तो हाल ही में पूर्वी लद्दाख में तैनात भी कर दिया गया है. भारतीय सेना को वर्ष 2026 तक कुल 114 धनुष (छह रेजीमेंट) मिल जाएंगी, जो बोफोर्स गन का ही एडवांस वर्जन है.
अटैग्स गन को भी सेना में शामिल करने की प्रक्रिया तेजी से चल रही है. इन तोपों का निर्माण देश की दो बड़ी प्राईवेट कंपनियों में किया जा रहा है. सारंग गन को भी सेना में शामिल कर लिया गया है.
ले.जनरल अदोष कुमार ने बताया कि धनुष और अटैग्स के अलावा मेक इन इंडिया के तहत 100 अतिरिक्त के-9 वज्र तोपों को भी शामिल किया जाएगा. कोरिया की के-9 वज्र तोप को अब भारत में ही तैयार किया जाता है.
आर्टिलरी डीजी ने ये भी बताया कि अमेरिका से जो एम-777 लाइट होवित्जर ली गई थी उन्हें भी चीन से सटी सीमा पर तैनात किया गया है. टीएफए के इस सवाल पर की क्या फिर से एम-777 हल्की तोप अमेरिका से ली जाएंगी, ले.जनरल अदोष कुमार ने स्पष्ट किया कि अब एलएसी तक पहुंचने के लिए भारत के पास ऐसी सड़कें और इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद है जहां से बड़ी बोफोर्स, अटैग्स, के-9 और धनुष गन पहुंच सकती हैं. ऐसे में एम-777 जैसी हल्की गन की खास जरूरत नहीं है जिन्हें चिनूक या फिर मी-17 हेलीकॉप्टर के जरिए एलएसी तक पहुंचाया जाता है.
तोपखाने के महानिदेशक ने बताया कि रूस-यूक्रेन युद्ध में आर्टिलरी के व्यापक इस्तेमाल के बाद भारत में सरकारी कंपनियों के साथ-साथ प्राईवेट इंडस्ट्री को भी तोप के गोले इत्यादि बनाने की जिम्मेदारी दी गई है. ऐसे में भारत के पास अब गोला-बारूद की कोई कमी नहीं है.
लेफ्टिनेंट जनरल कुमार ने बताया कि तोपखाने में अब नबलैस एम्युनिशन पर जोर दिया जा रहा है. अभी तक आर्टिलरी में डम्ब-बम का इस्तेमाल किया जाता है. नबलैस यानी प्रेशियन एम्युनिशन जो चलते फिरते टारगेट को भी निशाना बना सके. विदेशी सेनाएं अब इन्ही स्मार्ट बम का इस्तेमाल करने लगी हैं.
तोप के साथ-साथ आर्टिलरी में पिनाका रॉकेट सिस्टम और ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल के साथ-साथ निर्भय और प्रलय मिसाइलों का भी इंतजार किया जा रहा है. (भारत की हाइपरसोनिक मिसाइल जल्द होगी रॉकेट फोर्स का हिस्सा)
लेफ्टिनेंट जनरल कुमार के मुताबिक, तोपखाने में सर्विलांस एंड टारगेट एक्यूजेशन (एसएटीए) यानी साटा रेजीमेंट पर भी खासा ध्यान दिया जा रहा है. इनमें स्वार्म ड्रोन से लेकर लोएटरिंग म्युनिशन और रिमोटली पायलेटड एयरक्राफ्ट शामिल हैं.
यानी युद्ध के मैदान में जरुरत पड़ने पर भारतीय सेना का तोपखाने जंग के मैदान में सर्वत्र मौजूद रहकर दुश्मन को ध्वस्त कर दे. क्योंकि रेजिमेंट ऑफ आर्टिलरी का आदर्श-वाक्य ही है सर्वत्र इज़्ज़त-ओ-इकबाल यानी हर जगह सम्मान और गौरव के साथ. (यूक्रेन युद्ध से सीख, पिनाका बिछाएगा दुश्मन के लिए बारूदी सुरंग)