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पेजर पर Beep Beep का खौफ…क्या है भारत की तैयारी

लेबनान में हिजबुल्लाह के आतंकियों के पेजर में हुए रहस्यमय ब्लास्ट से पूरी दुनिया सकते में है. बड़ा सवाल ये कि क्या वाकई सैकड़ों किलोमीटर दूर बैठकर किसी कम्युनिकेशन डिवाइस की बैटरी को हैक कर इतना गर्म किया जा सकता है कि उसके करीब छिपाकर रखे गए एक्सप्लोसिव में ब्लास्ट हो जाए. इसी सवाल में छिपा है कि क्या भारत की खुफिया एजेंसी या फिर हमारे मिलिट्री साइंटिस्ट ऐसी किसी तकनीक से वाकिफ है भी या नहीं.

तीन-चार महीने पहले हमारे देश के सबसे प्रतिष्ठित रक्षा अनुसंधान संस्थान, डीआरडीओ यानी डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन की एक हिंदी पत्रिका जारी की गई थी. इस पत्रिका में डीआरडीओ के साइंटिस्ट ने अपनी कहानियां और कविताएं संकलन की थी.

इस पत्रिका की एक कहानी का शीर्षक था ‘बीप-बीप का खौफ’. वहीं बीप-बीप जो लेबनान के आतंकियों के पेजर पर ब्लास्ट होने से पहले सुनी गई थी. कहानी को लिखा है डीआरडीओ के एक प्रसिद्ध साइंटिस्ट ने, जो खास बात है कि इन दिनों हमारे देश के टॉप मिलिट्री कमांडर के साइंटिफिक-एडवाइजर के पद पर तैनात हैं.

कहानी के जरिए डीआरडीओ के साइंटिस्ट ने बताया कि एक शख्स का फोन जो बंद था, वो अचानक ऑन होकर वाइब्रेट होने लगता है. अचानक उसमें बीप-बीप की आवाज होती है और फोन खुद ब खुद अलमारी के ऊपर से नीचे गिर जाता है. कुछ दिनों बाद इस फोन में अजीब-अजीब सी गतिविधियां होने लगती हैं. कभी मोबाइल फोन की डायरेक्ट्री बदल जाती है तो कभी क्रॉस-कनेक्शन होने लगता है. शुरुआत में इस शख्स को अपने घर में भूत-प्रेत का साया प्रतीत होता है. लेकिन जब उसका एक दोस्त जो विजिलेंस विंग (खुफिया एजेंसी) में कार्यरत था, घर आता है तो बताता है कि दरअसल, उस इलाके में कोई हैकर है जो मोबाइल फोन के सॉफ्टवेयर से छेड़छाड़ कर रहा था.

कहानी में बताया गया है कि घर और ऑफिस के लिए अलग-अलग मोबाइल फोन का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. फोन का कम से कम इस्तेमाल किया जाना चाहिए. फोन का पासवर्ड स्ट्रांग होना चाहिए ताकि कोई आसानी से हैक न कर पाए.

खैर ये कहानी जरुर है लेकिन एक बात पक्की है कि हमारे देश के साइंटिस्ट भी हॉलीवुड में दिखाई जाने वाली साइंस-फिक्शन मूवीज से वाकिफ हैं. उन्हें पता है कि फोन हैकिंग बेहद आसान है और उसका तोड़ एक ही है, कम से कम इस्तेमाल.

शायद यही वजह है कि आज राजधानी दिल्ली स्थित डीआरडीओ हेडक्वार्टर और देशभर में फैली संवेदनशील लैब में स्मार्ट फोन को ले जाना सख्त मना है. सिवाय प्रचार-प्रसार से जुड़े अधिकारियों और चुनिंदा साइंटिस्ट के किसी को भी स्मार्ट फोन ले जाने की मनाही है. यहां तक की साउथ ब्लॉक स्थित रक्षा मंत्रालय में भी पब्लिसिटी विंग से जुड़े अधिकारियों के अलावा अधिकतर अधिकारियों और कर्मचारियों के स्मार्ट फोन ले जाने पर पाबंदी लगी हुई है. (हिजबुल्लाह के Pager का ताइवान कनेक्शन, नेतन्याहू के चेहरे पर कुटिल मुस्कान)

कई साल पहले जब देश में एक नए रक्षा मंत्री ने पदभार संभाला तो देखा गया कि डीआरडीओ के कुछ अधिकारी उनके निवास के बाहर एक बॉक्स लेकर खड़े हैं. उन बॉक्स को लेकर सवाल पूछा तो उन्होंने बताया कि ये ‘सिक्योर’ फोन है. यानी डीआरडीओ द्वारा तैयार किया गया खुद का मोबाइल हैंडसेट. क्योंकि रक्षा मंत्री के हवाले देश की सुरक्षा है और इसके लिए कम्युनिकेशन में किसी तरह के ‘ब्रीच’ की जरा गुंजाइश नहीं रहनी चाहिए.

वर्ष 2014 में इंग्लैंड की इंटेलिजेंस एंजेसी पर बनी एक फिल्म आई थी ‘किंग्समैन: द सीक्रेट सर्विस’. इस फिल्म में दिखाया गया था कि विलेन ने अपने गुर्गों के गले में एक खास चिप इम्पलांट कर रखी थी और जरुरत पड़ने पर उन्हें कहीं से भी बैठकर ब्लास्ट कर सकता था. (https://x.com/neeraj_rajput/status/1836066243553443930)

यही वजह है कि खास चिप लगे मोबाइल फोन सेना और उससे जुड़े बेस और मिलिट्री छावनियों में ले जाना मना है.

पेजर पर बीप-बीप जैसी ‘डैस्टिक्टिव टेक्नोलॉजी’ को इस्तेमाल से पहले सार्वजनिक नहीं किया जाता है. ऐसी तकनीक को ओवर्ट या कोवर्ट ऑपरेशन के दौरान ही दुनिया के सामने प्रदर्शित किया जाता है.

भारतीय वायुसेना भी अपने संवेदनशील एयर बेस पर स्मार्ट फोन से तस्वीर या वीडियो बनाने को लेकर सख्त है. क्योंकि दुश्मन देश स्मार्ट फोन से ली गई तस्वीरों की जियो-टैगिंग से एयरबेस की जानकारी इकट्ठा कर सकता है. कुछ साल पहले, वायुसेना ने अपना खुद का मोबाइल नेटवर्क (‘एफनेट’) तैयार किया था. ऐसे में वायुसेना के अधिकारियों को ज्यादा से ज्यादा इस मोबाइल को ही इस्तेमाल करने पर जोर दिया जाता है.

थलसेना का एक लंबे समय से अपना खुद का लैंडलाइन नेटवर्क है जो आम नागरिकों से बिल्कुल अलग है. यहां तक की सेना के कंप्यूटर और सिस्टम पर किसी भी तरह इंटरनेट के इस्तेमाल पर पूरी तरह पाबंदी लगी हुई है. इंटरनेट, ईमेल और सोशल मीडिया के लिए सेना के अलग कम्प्यूटर हैं.

यहां तक की गलवान घाटी की झड़प (जून 2020) के दौरान भारतीय सेना ने पूर्वी लद्दाख में तैनात सभी सैनिकों के मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर सख्त पाबंदी लगा दी थी. ऐसा इसलिए क्योंकि एक तो मोबाइल फोन के इस्तेमाल से चीन को इस बात का पता लग सकता था कि यहां कितने सैनिक मौजूद हैं और दूसरा कम्युनिकेशन इंटरसेप्ट कर सकता है. ऐसे में मिलिट्री कमांडर्स के बीच सिक्योर लाइन पर ही संदेश का आदान-प्रदान किया जाता था. (इजरायल का हिजबुल्लाह पर Pager Attack, हजार से ज्यादा आतंकी घायल)