July 5, 2024
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बालाकोट एयर स्ट्राइक के क्यों नहीं मिले सबूत

पाकिस्तान के बालाकोट में आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद के ट्रेनिंग कैंप पर हुए हमले के पांच साल पूरे ही चुके हैं. वर्ष 2019 में आज ही के दिन यानी 26 फरवरी को भारतीय वायुसेना ने शांति काल में पहली बार सीमा रेखा पार कर पाकिस्तान में घुसकर एयर-स्ट्राइक की थी. करगिल युद्ध के दौरान भी वायुसेना के फाइटर जेट ने कभी एलओसी पार नहीं की थी. लेकिन पुलवामा आतंकी हमला का बदला लेने के लिए भारत ने ऐसा ऑपरेशन किया जिसके कारण भारतीय वायुसेना की ग्लोबल रैंकिंग दुनिया में काफी ऊपर पहुंच गई थी–चीन से भी ऊपर.

26 फरवरी 2019 की तड़के करीब 3.30 बजे भारतीय वायुसेना के आधा दर्जन मिराज-2000 फाइटर जेट ने पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वा में एलओसी से करीब 150 किलोमीटर यानी पाकिस्तान सीमा में घुसकर 1000 किलो के स्पाइस बम गिराए थे. हालांकि, वायुसेना ने कभी इस बात का खुलासा नहीं किया था कि एयर-स्ट्राइक में कितने आतंकी मारे गए थे लेकिन इंटेलिजेंस एजेंसियों ने मोबाइल फोन के आधार पर इस बात की आशंका जताई थी कि वहां करीब 300 आतंकी ढेर किए गए थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कहने पर वायुसेना ने इस मिशन को ऑपरेशन बंदर नाम दिया था. 

भारत की खुफिया एजेंसियां का मानना था कि वायुसेना के हमले के वक्त जैश के आतंकी कैंप में करीब 300 मोबाइल फोन एक्टिव थे. लेकिन हमले के बाद ये सभी मोबाइल फोन हमेशा हमेशा के लिए बंद हो चुके थे. इसी से इंटेलिजेंस एजेंसियां 300 के आंकड़े तक पहुंच पाई थी. वायुसेना के फाइटर जेट क्योंकि हमला करने के तुरंत बाद आसमान से वापस लौट आए थे ऐसे में वायुसेना के पास मारे गए आतंकियों की सही सही जानकारी नहीं थी. माना जाता है कि मिराज-2000 फाइटर जेट पाकिस्तान के एयर डिफेंस सिस्टम को चकमा देने में कामयाब हो गए थे. पाकिस्तान की रडार भारत के फाइटर जेट को इंटरसेप्ट तो क्या डिटेक्ट भी नहीं कर पाई थीं. 

पुलवामा हमले के दौरान भारतीय वायुसेना के पास रुस के बेहद ही घातक और शक्तिशाली सुखोई फाइटर जेट भी थे लेकिन उनका इस्तेमाल हमले के लिए नहीं किया गया था. वायुसेना को आशंका थी कि एलओसी के करीब पहुंचते ही सुखोई फाइटर जेट पाकिस्तान की एयर डिफेंस की जद में आ सकते थे. लेकिन साइज में छोटे और आधुनिक एवियोनिक्स से लैस मिराज 2000 पाकिस्तानी रडार को गच्चा देने में सफल रहे थे. 

फरवरी 2019 तक भारतीय वायुसेना के पास फ्रांस के रफाल (राफेल) लड़ाकू विमान नहीं आए थे. लेकिन 80 केे दशक में फ्रांस से ही लिए मिराज-2000 फाइटर जेट से ही वायुसेना ने पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक की थी. ये मिराज लड़ाकू विमान ग्वालियर एयर बेस पर तैनात थे. ग्वालियर में मिराज फाइटर जेट की तीन स्क्वाड्रन हैं–नंबर 1 स्क्वाड्रन (टाइगर्स), 7 स्क्वाड्रन (बैटल एक्स) और 9 स्कॉवड्रन (वुल्फ-पैक) 

कुछ साल पहले ही फ्रांस की दासो कंपनी (जो रफाल और मिराज का निर्माण करती है) से मिराज-2000 अपग्रेड होकर भारत लौटे थे. ऐसे में इन लड़ाकू विमानों की घातक क्षमता कई गुना बढ़ गई थी. भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान पर हमले के लिए छह मिराज-2000 फाइटर जेट का इस्तेमाल किया था. लेकिन एलओसी पार की थी पांच मिराज फाइटर जेट ने. इस दौरान मिराज फाइटर जेट के पैकेज को सुखोई फ्लैंक कर रहे थे. यानी अगर पाकिस्तान के फाइटर जेट स्क्रैम्बल किए जाते तो एयर-सूपेरियारिटी में माहिर सुखोई ही उनसे मुकाबले करते. 

पाकिस्तानी वायुसेना को आउट-मैनुवर करने के लिए 25-26 फरवरी की दरमियानी रात जम्मू-कश्मीर से सटी एलओसी, श्रीनगर और राजस्थान तक की एयर-स्पेस में इंडियन एयर फोर्स के लड़ाकू विमान आसमान में ही थे. ऐसे में पाकिस्तानी वायुसेना समझ नहीं पाई कि आखिर भारत की रणनीति क्या है. साथ ही ग्वालियर से फ्लाई करने के बाद मिराज-2000 फाइटर जेट ने आगरा, बरेली के रास्ते (हवाई मार्ग) से शिमला के जरिए जम्मू-कश्मीर के उरी से पाकिस्तान के मुजफ्फराबाद होते हुए खैबर पख्तूनख्वा दाखिल हुए थे. ऐसे में जब तक पाकिस्तानी एयर डिफेंस एक्टिव होती मिराज फाइटर जेट आतंकी कैंप पर बम गिराकर वापस भारत की एयर-स्पेस में लौट चुके थे. एक मिराज का निशाना चूका था जिसके कारण एक बम पास के जंगल में जाकर गिरा था. अन्यथा सभी निशाने अचूक थे. 

आतंकी कैंप पर हमला करने के लिए मिराज फाइटर जेट ने इजरायल से लिए स्पाइस-2000 बम का इस्तेमाल किया था. ये खास बम किसी भी बिल्डिंग में दाखिल होकर अंदर बड़ा धमाका करते थे. ये ऐसे बम थे जिनका असर बिल्डिंग के अंदर ज्यादा होता था और बाहर की दीवारों को ज्यादा नुकसान नहीं होता है. यही वजह है कि पाकिस्तान ने कई हफ्तों तक जैश के ट्रेनिंग कैंप तो क्या आसपास की पहाड़ी तक भी किसी को अंदर दाखिल नहीं होने दिया था. 

पाकिस्तान सेना की मीडिया विंग आईएसपीआर अंतरराष्ट्रीय मीडिया को अप्रैल 2019 में जाबा टॉप पर बने आतंकी कैंप लेकर गई थी. खुद मीडियाकर्मियों ने इस बात की पुष्टि की कि बिल्डिंग में कई जगह रंग-रोगन हुआ था और ऐसा प्रतीत होता था कि उसकी हाल ही में मरम्मत हुई है. पाकिस्तानी सेना जैश के आतंकी कैंप को इस्लामिक मदरसे के तौर पर दिखाने ले गई थी. ये दिखाने के लिए कि भारतीय वायुसेना ने एक मदरसे पर हमला करने की कोशिश की थी और इस दौरान हड़बड़ाहट में पास के जंगल में बम गिरा दिए थे जिससे किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ था. 

खास बात ये है कि पाकिस्तान सेना की इंटर सर्विस पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर) के डीजी मेजर जनरल आसिफ गफूर ने ही सबसे पहले ट्वीटर (अब एक्स) पर इस बात का खुलासा किया कि भारतीय एयरक्राफ्ट ने बालाकोट के करीब पेलोड (बम) गिराया है. तब जाकर पूरी दुनिया नींद से जागी और पता चला कि वायुसेना ने ऐसे मिशन को अंजाम दिया है जो शायद दुनिया की बेहद शक्तिशाली एयरफोर्स भी करने से कतराते हैं. क्योंकि इस तरह के मिशन से युद्ध की नौबत भी आ सकती थी. करगिल युद्ध के दौरान तक भी वायुसेना को लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) पार करने की इजाजत नहीं दी गई थी. ऐसे में ये एक बेहद ही डेयरिंग मिशन था जिसे मोदी सरकार ने हरी झंडी दी थी. 

बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद मिलिट्री पावर में भारतीय वायुसेना की ग्लोबल रैंकिंग काफी ऊपर हो गई थी. अमेरिका और रूस के बाद भारतीय वायुसेना की गिनती होने लगी. भले ही चीन की वायुसेना के पास एयरक्राफ्ट की संख्या भारत से ज्यादा है लेकिन चीन की पीएलए (एयरफोर्स) ने कभी ऐसे खतरनाक मिशन को अंजाम आज तक नहीं दिया है. यही वजह है कि इंडियन एयर फोर्स चीन से रैंकिंग में ऊपर हो गई. 

बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद हालांकि वायुसेना की आलोचना भी हुई. ये इसलिए क्योंकि विपक्षी पार्टियां और विदेशी मीडिया हमले का सबूत मांग रहे थे. लेकिन वायुसेना ने हमले को कोई फोटोग्राफी या वीडियोग्राफी नहीं की थी. हालांकि, वायुसेना ने कभी इस बात का खुलासा नहीं किया लेकिन माना जाता है कि उस वक्त तक मिराज-2000 फाइटर जेट में ऐसा कोई कैमरा नहीं लिया गया था जो हमले की तस्वीरें ले सके. खास बात ये है कि 26 फरवरी 2019 को हमले के वक्त आसमान में बादल भी छाए हुए थे. इसके कारण सेटेलाइट से तस्वीर लेना भी मुमकिन नहीं था. लेकिन अब भारतीय वायुसेना के फाइटर जेट को ऐसे कैमरों से लैस किया जा रहा है जो एयर-स्ट्राइक और बमबारी की वीडियो तक रिकॉर्ड कर सकते हैं. 

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